नदी माँ
एक बार मैं अमृतसर में ब्यास नदी के किनारे बैठा नदी के शांत, विशाल सौंदर्य को निहार रहा था. कुछ विद्यार्थी भी साथ थे. अचानक, हमने सतह पर एक साँप जैसी आकृति को लहराते हुए अपने सामने से गुज़रते देखा. हमारी आँखें दूर तक उस मनमोहक, रहस्यमयी तैराक का पीछा करती रहीं. एक बिंदु पर तैराक ने डुबकी लगाई और ग़ायब! ऐसा लगा मानो वह नदी के गर्भ में समा गया.

फिर हम कल्पना करने लगे कि नदी के गर्भ में कैसा असीम और विविध जगत होगा. हज़ारों प्रकार के जीव-जंतु और पेड़-पौधे इस ममतापूर्ण गर्भ में आश्रय पाते होंगे, अठखेलियाँ करते होंगे. और एक प्यारी माँ के जैसे नदी उनकी सुरक्षा और पोषण करती होगी. शायद इसी ममत्व-भाव के वशीभूत नदियों को भारत में माँ कहा जाता है.

इसीलिए नदी में नहाने का मज़ा अनोखा होता है, ऐसा लगता है जैसे आप माँ की गोद में खेल रहे हों. एक शीतल, मधुर, स्निग्ध आलिंगन हमें समेटे हुए.

जैसे हम मानवीय माँ के साथ प्रेम और आदर का व्यवहार करते हैं, वैसे ही नदी माँ के साथ करना चाहिए. जहाँ कहीं किसी नदी के पास से गुज़रें, नतमस्तक हो जाना चाहिए. दुर्भाग्यवश, कितने लोग तो जन्म देनी वाली माँ के प्रति उदासीन और संवेदनशून्य होते हैं, जलीय माँ की तो बात ही क्या फिर? नदियों की छाती में विषैले रसायन, धार्मिक अनुष्ठानों की सामग्री, पॉलीथीन, पिकनिकों की गंदगी, और जाने कैसे-कैसे नदियों का अनादर हम करते हैं.

नदी को माँ कहना एक बात है और माँ जैसा रिश्ता निभाना बिल्कुल अलग बात. इस रिश्ते को निभाने के लिए इतना संकल्प भी काफ़ी होगा कि हम कम से कम व्यक्तिगत स्तर पर कभी भी नदियों को प्रदूषित न करें.